
पशुपतिनाथ के विषय में कथा है कि महाभारत युद्घ में पाण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान भोलेनाथ पाण्डवों से नाराज हो गये। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पाण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े।
गुप्त काशी में पाण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थिति है।
शिव जी का पीछा करते हुए पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पाण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। पाण्डवों ने भैसों के झुण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तब शिव जी भैंस के रूप में ही भूमि समाने लगे। भीम ने भैंस को कसकर पकड़ लिया।
भगवान शिव प्रकट हुए और पाण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। इस बीच भैंस बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुपति नाथ में पहुंच गया।
इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है।